Saturday, September 18, 2010

क्या ये न्याय है ?

दिन ः- शुक्रवार17 सितंबर     समय ः- सायं 4 बजे    स्थान ः- छत्तीसगढ हाईकोर्ट , बिलासपुर
माननीय न्यायाधीश ः- श्री धीरेन्द्र मिश्रा              विषय ः- - निधी तिवारी की मौत
संदर्भ ः- स्व. निधी तिवारी के पति राजेश तिवारी के ऊपर धारा 306, 323, 498-ए  का आरोप लगा कर पुलिस डायरी पेश की गई । डायरी में चश्मदीद गवाहों के बयान दर्ज हैं जो राजेश को निर्दोष बताते हैं  जिसमें प्रमुख गवाह मृतका की 11 वर्षीय पुत्री रितीका तिवारी को बताया गया है । दुसरी ओर मृतका के लिखे पत्र  है जिसमें उसनें अपनी मौत का जिम्मेदार राजेश तिवारी को बताई है और मृतका की पोस्टमार्टम रिपोर्ट  है ।
      
                                       मैं कोई आरोप नही लगा रहा हूँ और ना ही न्यायपालिका पर उंगली उठा रहा हूँ । मेरी कोई औकात नही है कि मैं ऐसा कर सकूं । विशेषकर तब तो बिल्कुल भी नही जब देश के पूर्व काननूमंत्री शशिभूषण नें देश की सर्वोच्च न्याय मंदिर में हलफनामा देकर  बताये हैं कि उक्त मंदिर के 16 में से 8 न्याय देवता भ्रष्ट थे । जब वे पूर्व की बात कर रहे हैं तो वर्तमान में तो देश नें तरक्की ही की है इसलिये आगे कुछ भी बताना व्यर्थ है ।

                                न्यायालीन  प्रक्रिया प्रारंभ हुई । सबसे पहले आरोपी पक्ष के अधिवक्ता नें रितीका का पत्र पढकर बताया कि -  मैं स्कूल से घर वापस आई । मम्मी नें भिंडी की सब्जी बनाई थी मुझे खाना खिलाकर मम्मी बोली ए.सी. वाले कमरे में पढने चलो । मुझे ए.सी. वाले कमरे में बैठाकर मम्मी अंदर कमरे में चली गई और दरवाजा अंदर से बंद कर लीं । थोडी देर बाद कमरे से धुंआ निकलता देख कर मैं मम्मी को आवाज देने लगी मैं दरवाजे के पास गई तो अंदर मम्मी की ओह ओह करके आवाज आ रही थी । खिडकी का कांच गर्म हो गया था .................वगैरह वगैरह.........

                                   मृत निधी की ओर से सरकारी वकिल थे जिनकी कार्यशैली निचली अदालतों के सरकारी वकील से जरा भी अलग नही थी । उन्होने निधी के पूर्व में लिखे पत्र को पढकर बताये कि राजेश का अपनी विधवा भाभी से अवैध संबंध है और राजेश उस संबंध के बदले में निधी को जान से भी मार सकता है ... सरकारी वकील की बात को काटते हुए न्यायधीश महोदय नें पुछे चिट्ठी कब लिखी गई है सरकारी वकिल नें जवाब दिये - तारीख नही  दिख रही है सन 1984 है । न्यायधीश महोदय नें कहे कि पुरानी चिट्ठीयों का आज कोई मतलब नही है ।
                                   मृतिका निधी तिवारी के पिता की ओर से नियुक्त विद्धान अधिवक्ता विभाष तिवारी नें सरकारी वकील के समर्थन में  जज महोदय को बताये कि लार्डशिप पोस्टमार्टम रिपोर्ट में निधी की मौत का कारण गला दबने से है इसके अलावा उसके पेट में जहर मिला है और ये दिखाने का प्रयास किया गया है कि उसनें अपने आपको आग लगा ली है । भला ये कैसे मुमकिन है कि कोई इस तरह से आत्महत्या करे ।
                              और फिर जो हुआ मुझे शशिभूषण जी आप बहुत याद आए । जज महोदय नें अपने आदेश में कहे कि ये सही है कि मामला हत्या का लग रहा है लेकिन चश्मदीद गवाह रितीका के बयान से जाहिर है निधी की मौत के समय उसका पति राजेश वहां नही था इसलिये आरोपी का जमानत आवेदन स्वीकार किया जाता है ।
                             मैं आपके के चेहरे के रंग बदलते भी देख रहा था आपके मन की उथापोहल को समझ रहा था आप थोडा जल्दी मे थे शायद घर का कोई काम अधुरा छुट गया होगा । आप मुझे देवता लग रहे थे लेकिन अफसोस आपने वह नही किया जो आपको करना था ।

                             मैने दसवीं के बाद पढाई छोड दी क्योंकि मुझे रट्टू तोता बनना अच्छा नही लगा । मैं खुलकर बोलने और और अपनी कमियों को सुनकर सहने का अभ्यस्थ हूँ । लेकिन ...... माफ किजिएगा सर आपने उस नाबालिक लडकी के बयान को सुनने औऱ समझने के साथ साथ वहां की परिस्थितियों को ना समझने की गलती कर चुके हैं । जब आपको विपक्ष के वकील नें फोटो दिखाना चाहे तो वह आपको देखना था , ना केवल देखना था बल्कि पुछना चाहिये था कि जो फोटो पुलिस डायरी में नही है वह आपके पास कहां से आई ? तब आपको जानकारी मिलती की निधी के पिता ने सुचना के अधिकार के तहत जिन फोटो और सीडीयों को हासिल कर लिये हैं वह पुलिस डायरी में नही लगाई गई है । आपको जानना चाहिये था उस नाबालिक लडकी के बयान को आधार बनाने से पहले कि वह लडकी किसके पास है और कहीं दबाव में तो नही है वह भी बात को यदि हम छोड दें तो भी ये बात हमें भ्रष्टाचार की याद दिलाती रहेगी कि जब आप मान रहे हैं कि हत्या हुई है तो फिर ये कैसे संभव है वह लडकी बाहर मुख्य दरवाजे पर बैठी रहे और अंदर कोई उसकी मां को सिर पर मारकर, जहर मिलाकर , गला घोंटकर मार दे और उसके बाद उसकी माँ के शरीर पर आग लगा कर कहीं गायब हो जाए ?

                                              मैं जानता हूँ इसे पढने के बाद कई लोग कहेंगे कि - हमें न्याय पर विश्वास रखना चाहिये । आज के भ्रष्ट हालातों में न्यायपालिका ही हमें राहत पहुंचाती है लेकिन इस केस में मुझे दुःख केवल इस बात का है कि निधी की जिस विभित्सापूर्क तरीके से हत्या की गई है उसके हत्यारों के लिये फांसी भी कम है ।

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